किसानों की हालत पहले ही गंभीर है। ऐसे में यदि घर के इकलौते कमानेवाले हाथ ही उखड जाए तो उस परिवार की महिला के हाल की कल्पना की जा सकती है। पूरा परिवार हाशिये पर आकर टूट-बिखर जाता है। ऐसे में फिर से घाटे का सौदा साबित हुई खेती की ओर मुडने का विचार ही मन को नहीं छूता।
परंतु चंद्रपुर तहसिल के घुग्घूस समिपस्थ वेंडली गांव की एक किसान की विधवा ने इस मिथक को तोड कर नयी मिसाल पेश की है। २० साल पहले ही गुजर चुके पति की खेती को उसने सोना उगलनेवाली बना दिया है। नंदा पिंपलशेंडे इस परिसर के ही नहीं बल्की पूरे राज्य के किसानों के लिए प्रेरणा की मिसाल बनी है। उसने फिर से खेती के लिए कर्ज लेने की हिम्मत दिखाई। सिंचाई की सुविधा की और प्रयोग पर प्रयोग करती गयी। समय समय पर फसलों को बदला। तब जाकर कर्ज के बोझ तले दबी खेति-किसानी कर्जमुक्त होकर सोना उगलने लगी। आज विधवा किसान नंदा अपनी दो बेटियों को उच्च शिक्षा दे रही है। समाज में सम्मान के साथ जी रही है। आर्थिक रुपसे सक्षम होकर दूसरों को रोजगार भी दे रही है।
खाने के पडे थे लाले
२० साल पहले ही नंदा के पति का निधन हो गया। परिवार का आधार ही खो जाने से परिवार बिखर गया। खाने के लाले पडे। चार एकड जमिन का क्या करे, पैसा कहां से लाए, फिर से कर्ज कैसे ले, तब तक जीएं तो जीएं कैसे? ऐसे कई सवाल थे। चंद्रपुर निवासी भाई सुरेश देहारकर ने तात्कालिक मदद दी। उससे थोडी हिम्मत आयी। बचेंगे तो और भी लडेंगे का जज्बा आया।
१२ साल की मेहनत
पति के देहांत के बाद संघर्ष का दौर शुरु हुआ। चार एकड खेती का टुकडा अपनी रोजी-रोटी बन सकता है, ऐसा विश्वास मन में आया। पति ने किया। मुझे भी करना है, यह भावना बढी। घर-गृहस्थी चलानी है, यह काम मुझे ही करना है ऐसा विचार हावी हुआ। इससे फिर खेती में ही प्रयोगों का दौर शुरु हुआ। भाई के सहयोग से पहले वर्ष खेती की। थोडी राहत मिली। परंतु घर चलाना है तो थोडा और चाहिए, यह नंदा के ध्यान में आया। उसने कर्ज लिया। खेत में सिंचाई की स्थायी व्यवस्था जुटाई। हर साल अलग अलग फसलें लेने की कोशिशें जारी रखी। इसे सफलता मिलती रही।
बेटी बचाव, बेटी पढाओं
नंदा को दोनों बेटियां ही है। पति के देहांत पश्चात उनकी शिक्षा का मुद्दा अहम था। दोनों को अच्छी पढाई देने वह प्रतिबध्द थी। क्योंकि वह भी एक बेटी ही तो है, ऐसा ख्याल उसकी ममता को आया। मेहनत की। एक बेटी एम.कॉम तक पढी। दूसरी ने आईटीआई पूरा किया। जल्द शादी करा, बेटियों से मूक्त होने का छोटा विचार उसके मन में नहीं आया। उसने बेटियों को ही बेटा मान कर खूब पढाया।
करेले ने किया जादू
चंद्रपुर शहर से कुछ किमी दूरी पर वेंडली गांव की जमिन पानी पकड कर नहीं रखती। उसके अनुसार फसलों का नियोजन करना पडता है। नंदा ने जून महिने में एक अलग प्रयोग किया। दो एकड में करेले की फसल बो दी। बाकी क्षेत्र में कपास लगाया। करेले दो माह में ही उभरकर आए। १५ दिनों में ११० क्विंटल करेले बाजार में भेजे। करेले चुनने नंदा ने जरुरतमंद महिलाओं को रोजगार भी दिया।
कपास की फसल भी फिलहाल अच्छी है।
आत्महत्या हल नहीं
संकट आते है। इससे डरना नहीं चाहिए। डर कर हार गए तो सब कुछ खत्म समझीए। सतत मेहनत व संघर्ष की तैयारी रखनी चाहिए। आत्महत्या कोई समाधान नहीं हो सकता। मैने निरंतर १२ साल संघर्ष किया। आज मै थोडी संतुष्ट हूं।
-नंदा पिंपलशेंडे
किसान महिला, वेंडली