RISE FOR INDIA
Culture Rising Stories Society Uncategorized

आम आदमी का सांस्कृतिक मंच बना ‘सृजन’

चंद्रपुर ५०० वर्ष से अधिक की ऐतिहासिक परंपरावाला शहर है। यहां बौध्द संस्कृति, हेमाडपंथ के स्थापत्य और गोंड राजाओं के अद्भूत निर्माण के प्रमाण आज भी इसकी प्राचीनता का प्रमाण देते डंटे दिखते है। स्वाधिनता आंदोलन के दौरान चिमूर क्रांती तो स्वाधिनता के बाद बाबासाहब आंबेडकर की दिक्षाक्रांती के अध्याय के बीच ही जैन धर्मियों का शतक पार करनेवाला मंदिर और भद्रावती में बसा जैनों का विश्वविख्यात तिर्थस्थल है।

सांस्कृतिक क्षेत्र को समृध्द करनेवाले कई कलाकार -लोककलाकारों की यहां अपनी परंपरा अपने समय रही, आज भी यह चल ही रही है। इतनी बडी पृष्ठभूमिवाले इस प्राचीन सांस्कृतिक महानगर में आम जन को अधिकार का सांस्कृतिक मंच नहीं था। परंपरा को तोडने का साहस कोई कर नहीं रहा था। कुछ गीने चूने लोग ही यहां के सांस्कृतिक सिपाहसालार बने थे। ऐसे में अधिकार के सांस्कृतिक मंच के अभाव की घूटन एक सामान्य लेखक ने दूर की और ऐसा इतिहास रच दिया कि आज उसकी वह कोशिश शहर का सांस्कृतिक गौरव बन गयी है। उस अधिकार के सांस्कृतिक मंच का नाम है ‘सृजन’..

 

सृजन कोई संस्था नहीं। इसका कोई पदाधिकारी नहीं। यह सांस्कृतिक लोकआंदोलन है। जो निरंतर पवित्र झरने की तरह कल कल करते बह रहा है। इस मंच पर अंतिम छोर के अंधेरी झोपडी में रहनेवाला सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी सम्मानित हुआ वहीं मीडिया की चाकाचौंध में हमेशा बने रहनेवाले चर्चित चेहरों ने भी स्वयं को प्रस्तूत किया। चंद्रपुर का यह सांस्कृतिक जनआंदोलन आज पूर्व विदर्भ ही नहीं राज्य के बाहर बेंगलूरु में भी पहुंंच गया है। यहां की प्रख्यात शायर अनघा तांबोली का हालही में कार्यक्रम हो चुका है।
सृजन की संकल्पना रखनेवाले मशहुर लेखक आशिष देव बताते है कि चंद्रपुर की सांस्कृतिक अमिरी इतनी है कि इसके लिए किसी सोफेस्टीकेटेड फे्रम में बसा गीने चूने लोगों का मंच नाकाफी है। क्योंकि इसमें सृजनात्मकता नहीं रह जाती। यह सांस्कृतिक विरासत को पूरी क्षमता से मुखर करने में असमर्थ हो जाता है। क्योंकि संस्कृति का सृजन तो आम अवाम से ही अधिकांश होता है। इसलिए एक सार्वजनिक मंच की कल्पना सामने आयी। इसमें कोई पदाधिकारी नहीं है। मै स्वयं संस्थापक हूं लेकिन मेरा कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह लोगों का अपना मंच है।

इस तरह से हुआ सृजन

srujan
पहले इसकी कल्पना कुछ मित्रों के साथ शेअर की। थोडीसी रुपरेखा तय की। कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में निमंत्रण पत्रिका निकालना, इसे बांटना, फिर प्रेस विज्ञप्ति बनाना और बांटना, फिर अतिथियों का इंतजार करना, सभागृह तय करना, वहां पर समय के पूर्व जाकर तैयारी करना, रंगोली डालना, दिप जलाना, स्वागत करना, प्रास्ताविक, मंच संचालन और आभार के बीच फोटो निकालना, फिर प्रेस में देना ऐसा सिलसिला शुरु हुआ। धीरे धीरे सभी सहयोगी अपने अपने कामों में व्यस्त होने से सहयोग बंद हो गया। इसलिए फिर पत्रिका की जगह एसएमएस ने लीं। समय खराब करनेवाली गतिविधियां बंद करना पडा। प्रेस नोट बांटने की बजाय मेल करना शुरु हुआ। स्वागत बंद किया। प्रास्ताविक, सुत्रसंचालन, रंगोली, दिप प्रज्वलन आदि बंद कर दी गयी। अब एक ही व्यक्ति हॉल, मंच, फोटो, प्रेस नोट, अतिथि तय कर उनसे समन्वय और सोशल मीडिया पर इसका प्रसार करता है।

अतिथि के पहले कार्यक्रम

कई बार निमंत्रित अतिथी का इंतजार करते करते कार्यक्रम को विलंब होता है। वक्त की भारतीय मानसिकता के मद्देनजर लोग भी देरी से पहुंचते है। परंतु सृजन ने इसे बदल दिया। एक बार तो निमंत्रित अतिथि के आने के पूर्व ही कार्यक्रम शुरु कर दिया गया। क्योंकि वे बहुत विलंब से आए थे। अब तो हाल यह है कि श्रोता रसिक लोग तो लोग अतिथी भी समय पूर्व पहुंच जाते है और कार्यक्रम तय वक्त पर शुरु होकर निर्धारित वक्त में ही समाप्त हो जाता है। चंद्रपुर के सांस्कृतिक जगत की यह क्रांती यहां चर्चा का विषय है।

हर माह एक कार्यक्रम

कोई आए ना आए हर माह एक कार्यक्रम महिने के अंतिम इतवार को बराबर आयोजित हो रहा है। ११ मई २००९ से निरंतर यह एक ही सभागृह में शाम साढे ६ बजे संपन्न हो रहे है। जून माह के अंतीम रविवार को ९९ वा कार्यक्रम होगा। सृजन के पास अपने १०१ वे कार्यक्रम की भी रुपरेखा तैयार है। इसके वक्ता, अतिथि नियोजित है। सांस्कृतिक और साहित्य-कला जगत के हर पहलू को छूनेवाले कार्यक्रम अब तक हुए है। इसमें एक भी क्षेत्र अछुता नहीं रहा है।

जब तक श्रोता चाहेंगे…

सृजन मुक्तांगण के रचनाकार आशिष देव से यह पुछने पर कि यह सिलसिला कब थमेगा? वे कहते है कि जब तक श्रोता चाहेंगे तब तक कार्यक्रम इसी तरह निरंतर चलते रहेंगे। क्योंकि सृजन मुक्तांगण का मंच अब लोगों का हो चुका है, मेरा इसपर कोई अधिकार नहीं। अब तक ९८ कार्यक्रम हो चुके है। सृजन के पास ९९ से १०१वे कार्यक्रम का नियोजन तैयार है।

एक सामान्य मजदूर को दिया मंच और सम्मान

srujan 03

वैसे फेहरिश्त तो काफी लंबी है परंतु कुछ सम्मानजनक नामों का उल्लेख और कुछ यादगार कार्यक्रमों का फिल्मांकन सृजन के पास आज भी मौजूद है। जिसमें बीते ७ वर्षो का लेखाजोखा है। परंतु सृजन ने एक आम मजदूर को मंच पर लाकर उसकी कला का सम्मान किया था। रंगनाथ रायपुरे नामक यह कवि यहां गौरवान्वित हुआ है। वहीं दूसरी ओर मशहुर समाजसेवी डा. अभय बंग, गायक कलाकार अनिरुध्द वनकर, रंगकर्मि प्रा. जयश्री कापसे-गावंडे, नुतन धवने, सुशिल सहारे, चित्रकार चंदु पाठक, आनंदवन के डा. विकास आमटे, साहित्यकार डा. शरद सालफडे, श्रीपाद जोशी, मदन पुराणिक, लोकनाथ यशवंत, किरण मेश्राम, प्रा.डा. इसादास भडके, अशोक पवार, डा. राजन जयस्वाल, झाडीपट्टी के डा. हरिश्चंद्र बोरकर, फिल्म निर्देशक शैलेश दुपारे, आनंदवन के सुधाकर कडू, इतिहासकार दत्ता तन्नीरवार, अशोकसिंह ठाकुर, कथ्थक नृत्यांगणा देशकर, किर्तनकार चैताली खटी, पूर्व केंद्रिय वीत्तराज्यमंत्री शांताराम पोटदुखे आदि लंबी सूची का समावेश है।

Related posts

To be ashamed of being called a Bihari Babua makes you a smaller person, to be a Bihari doesn’t

Rise For India

Musings of a viewer over the story of Haider

Rise For India

Pregnant Ladies, Are You Aware Of Your Rights? Check out 7 Rights You Should Know About!

Rise For India

Leave a Comment